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विपक्ष ने बुधवार को केरल विधानसभा में राज्य में फूड पॉइजनिंग की घटनाओं की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए दावा किया कि हाल की घटनाओं से संकेत मिलता है कि एलडीएफ सरकार खाद्य सुरक्षा अधिनियम को लागू करने में पूरी तरह विफल रही है।

केरल में कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन यूडीएफ ने आरोप लगाया कि वामपंथी सरकार की ‘अक्षमता और कुप्रबंधन’ से राज्य में फूड पॉइजनिंग से संबंधित मौतें हो रही हैं। विपक्ष ने बुधवार को केरल विधानसभा में राज्य में फूड पॉइजनिंग की घटनाओं की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए दावा किया कि हाल की घटनाओं से संकेत मिलता है कि एलडीएफ सरकार खाद्य सुरक्षा अधिनियम को लागू करने में पूरी तरह विफल रही है।

वहीं, राज्य की स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने विपक्ष के आरोपों का खंडन किया और कहा कि 2016 में एलडीएफ सरकार के सत्ता में आने के बाद से खाद्य वस्तुओं की जांच की संख्या कई गुना बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि सिर्फ पिछले साल 50,000 से अधिक नमूनों की जांच की गई और राज्य सरकार ने कड़े कदम उठाए हैं। भोजनालयों के कर्मचारियों के लिए प्रमाणित ‘हेल्थ कार्ड’ जारी किए गए हैं।

वीना जॉर्ज ने कहा कि 16 फरवरी से ‘हेल्थ कार्ड’ अनिवार्य होगा। इसके अलावा राज्य सरकार ने एक फरवरी से ‘बेस्ट बिफोर लेबल’ के बिना खाद्य पदार्थों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है।  स्वास्थ्य मंत्री ने सदन में कांग्रेस विधायक तिरुवंचूर राधाकृष्णन द्वारा उठाए गए सवालों पर यह जवाब दिया।

खाद्य सुरक्षा में केरल 6वें स्थान पर खिसका
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राधाकृष्णन ने सदन में दावा किया कि खाद्य सुरक्षा विभाग और स्वास्थ्य विभाग उचित तरीके से काम करने के बजाय इस मुद्दे से निपटने के लिए अलग-अलग तरीके अपना रहे हैं। उन्होंने यह भी दावा किया कि यूडीएफ शासन के दौरान खाद्य सुरक्षा में केरल देश में पहले नंबर पर था और 2022 में 6वें स्थान पर खिसक गया।

उन्होंने कहा कि खाद्य सुरक्षा विभाग की नाकामी के कारण राज्य में फूड पॉइजनिंग से काफी मौतें हुई हैं। जनता भी इसे देख रही है। कांग्रेस विधायक ने आरोप लगाया कि मिलावटी डेयरी उत्पाद और एक्सपायर्ड या सड़ा मांस बिना किसी निगरानी के दूसरे राज्यों से आ रहे हैं, जो सीमाओं पर जांच की कमी का संकेत देता है।

जांच के परिणाम में देरी के कारण आरोपी बिना सजा के छूट जाते हैं…
उन्होंने कहा कि राज्य में सिर्फ तीन एनएबीएल मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला हैं, जिसके कारण एकत्र किए गए नमूनों की जांच में देरी होती है। साथ ही उचित परिणाम भी नहीं मिलते हैं, जिससे आरोपी छोड़ दिए जाते हैं। उन्होंने आगे दावा किया कि खाद्य सुरक्षा मानदंडों के उल्लंघन से संबंधित हजारों मामले अदालतों में लंबित हैं और प्रयोगशालाओं की कमी के कारण जांच के परिणाम में देरी के कारण भी आरोपी बिना किसी सजा के छूट जाते हैं।

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